जिले में सूद का धंधा करने वाले कई लोग अपने को लाइसेंसी बताते हैं। प्रशासन के रिकार्ड पर गौर करें तो अधिकतर लोग बिना लाइसेंस के ही इसका कारोबार करते हैं। इसमें कई सूदखोर ऐसे हंै जो जेवर व जमीन के कागजात बंधक रखकर कर्ज देते हैैं। इनके ब्याज की दर बैंकों की तुलना में काफी अधिक होती है। इससे सालभर में मूलधन की राशि दोगुनी हो जाती है। नतीजा कर्ज लेने वाले की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती चली जाती है।
गाइडलाइन के तहत ही कारोबारी को ब्याज भी लेना पड़ता है। उन्हेें सरकार के निर्देश के अनुसार ही कर्जदार से रुपये वसूलने होते हैं। इसके अलावा हर साल उन्हें रिटर्न भी जमा करना होता है। टैक्स बचाने के चक्कर में लोग लाइसेंस नहीं लेते। जिले में हजारों की संख्या में ऐसे लोग हैं जो सूद का धंधा करते हैं। बता दें कि सूद पर रुपये लेने वालों में अधिकतर मजदूर व छोटे कारोबारी शामिल होते हैं। प्रत्येक शाम में सूदखोर उनकी दुकान पर वसूली करने पहुंच जाते हैं अगर अगर वह पैसे नहीं देता है तो वह उसके घर जाकर ढूंढ काटते हैं तथा उसको मारने की धमकी देते हैं।
बहुत ही शानदार