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रिपोर्टर मोहित वशिष्ठ
सैफनी नगर में मोहर्रम का त्यौहार बड़े ही शांति रूप से मनाया गया।

सैफनी नगर में शनिवार को मोहर्रम का पर्व मनाया गया।नगर के कोठी मोहल्ला छितौनी मार्ग जया प्रदा मार्ग मदरसा मार्किट से होता हुआ मोहल्ला डेरा मोहल्ले से होता हुआ मोहर्रम का जुलूस अकवरपुर मार्ग पर बनी कर्बला पर पहुँचा लोगो ने वड़े बड़े ताजियों के साथ ढ़ोलो को ट्रेक्टर ट्रॉली पर रख कर नगर में जुलूस निकाला जगह जगह लोगो ने जुलूस में चलने वाले हुसैन के दीवानों को सवील शर्वत पिलाया और जलेवी लड्डू आदि तस्कीम किया। मुस्लिम समुदाय का मातमी पर्व मोहर्रम मनाया जाता है। दरअसल मोहर्रम एक महीना है, इसी महीने से इस्‍लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है। मोहर्रम की 10 तारीख को हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातम मनाया जाता है। इस दिन हजरत इमाम हुसैन को मानने वाले खुद को तकलीफ देकर इमाम हुसैन की याद में मातम मनाते हैं।क्यों मनाया जाता है मुहर्रम इमाम हुसैन और उनके लश्कर की शहादत की याद में दुनियाभर में शिया मुस्लिम मुहर्रम मनाते हैं। इमाम हुसैन, पैगंबर मोहम्मद साहब के नाती थे, जो कर्बला की जंग में शहीद हुए थे। मुहर्रम क्यों मनाया जाता है, इसके लिए हमें तारीख के उस हिस्से में जाना होगा, जब इस्लाम में खिलाफत यानी खलीफा का राज था। ये खलीफा पूरी दुनिया के मुसलमानों का प्रमुख नेता होता था। पैगंबर साहब की वफात के बाद चार खलीफा चुने गए थे। लोग आपस में तय करके इसका चुनाव करते थे।जब आया घोर अत्याचार का दौर इसके लगभग 50 साल बाद इस्लामी दुनिया में घोर अत्याचार का दौर आया, मक्का से दूर सीरिया के गर्वनर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया, उसके काम करने का तरीका बादशाहों जैसा था, जो उस समय इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ था, तब इमाम हुसैन ने यजीद को खलीफा मानने से इनकार कर दिया। इससे नाराज यजीद ने अपने राज्यपाल वलीद पुत्र अतुवा को फरमान लिखा, ‘तुम हुसैन को बुलाकर मेरे आदेश का पालन करने को कहो, अगर वो नहीं माने तो उसका सिर काटकर मेरे पास भेजा जाए।’राज्यपाल ने हुसैन को राजभवन बुलाया और उनको यजीद का फरमान सुनाया। इस पर हुसैन ने कहा-मैं एक व्याभिचारी, भ्रष्टाचारी और खुदा रसूल को न मानने वाले यजीद का आदेश नहीं मान सकता।’ इसके बाद इमाम हुसैन मक्का शरीफ पहुंचे, ताकि हज पूरा कर सकें। वहां यजीद ने अपने सैनिकों को यात्री बनाकर हुसैन का कत्ल करने के लिए भेजा। इस बात का पता हुसैन को चल गया लेकिन मक्का ऐसा पवित्र स्थान है, जहां किसी की भी हत्या हराम है।इसलिए उन्होंने खून-खराबे से बचने के लिए हुसैन ने हज के बजाय उसकी छोटी प्रथा उमरा करके परिवार सहित इराक आ गए। मुहर्रम महीने की दो तरीख 61 हिजरी को हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला में थे, नौ तारीख तक यजीद की सेना को सही रास्ते पर लाने के लिए समझाते रहे, लेकिन वो नहीं माने। इसके बाद हुसैन ने कहा- ‘तुम मुझे एक रात की मोहलत दो..ताकि मैं अल्लाह की इबादत कर सकूं’ इस रात को ‘आशुर की रात’ कहा जाता है, अगले दिन जंग शुरू हो गई जिसमें हुसैन के 72 साथी मारे गए।तब सिर्फ हुसैन अकेले रह गए थे, लेकिन तभी अचानक खेमे में शोर सुना, उनका छह महीने का बेटा अली असगर प्यास से बेहाल था। हुसैन उसे हाथों में उठाकर मैदान-ए-कर्बला में ले आए। उन्होंने यजीद की फौज से बेटे को पानी पिलाने के लिए कहा, लेकिन फौज नहीं मानी और बेटे ने हुसैन की हाथों में तड़प कर दम तोड़ दिया। इसके बाद भूखे-प्यासे हजरत इमाम हुसैन का भी कत्ल कर दिया। हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपनी जान कुर्बान की थी। इसे आशुर यानी मातम का दिन कहा जाता है, इराक की राजधानी बगदाद के दक्षिण पश्चिम के कर्बला में इमाम हुसैन और इमाम अब्बास को कुछ कबीले के लोगो ने दफन कर दिया उन्ही की शहादत के दिया दस तारीक को मोहर्रम का पर्व मनाया जाता है। बही दूसरी ओर प्रथम श्रावण माह के चलते महा के अंतिम सोमवार में भगवान शिवलिंग पर जलाभिषेक करने हेतु कावड़ियो के जत्थे भी रोड पर होकर निकले मोहर्रम पर्व का जुलूस वा कावडियो को भी सुरक्षा प्रदान करने में सैफनी थाना प्रभारी अमरपाल सिंह भी भारी फोर्स के साथ वा क्षेत्राधिकारी शाहाबाद के एन आनंद भी काफी एक्टिव रहे।जिसमे ब्रजेश जोशी,अनिल चौधरी कांस्टेबल ने मोहर्रम जुलूस वा कावडियो के चलते काफी सहयोग प्रदान किया।

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