Spread the love

मानव अपने जीवन मे निरंतर गति करता है उस गति को जिस उद्देश्य मे समझना चाहे उसी मे भाव अर्थ छिपा मिल जायेगा! गति या भाग दौड़ जिंदगी का अहम हिस्सा नही है बल्कि स्थाई अहम हिस्सा है जिसको पाने की लालशा छूट गई है क्योकि मानव का निरंतर अभ्यास दुःख, भय, रोग, पीड़ा, मोह जिसका स्थान मानव के मन मे है उसको निरंतर दूर करने मे गति करता रहा !लेकिन जो नित्य स्थाई है उसको उस स्थिति मे लाकर खड़ा दिया की उसका आभास मात्र मानव मे कभी दिखाई पढ़ता है! ठीक उसी प्रकार से जैसे राख मे ढका हुआ लाल अंगारा की भाति जब तक मानव ज्ञान रूपी वायु या यंत्र से राख को अलग नही करेगा तब तक लाल अंगारे की प्राप्ति संभव नही है! अर्थात् स्थाई(प्रकृति) सभी ह्रदय मे निवास करता जिसके  कारण सभी मानव के अंदर असंभव कार्य करने की क्षमता है लेकिन गतिमान को रोकने मे अपनी संपूर्ण ऊर्जा का प्रयोग कर स्थाई (प्रकृति) की ओर दृष्टि पहुँच ही नही पाती है! स्थाई को पाने के के लिए लोग विभिन्न प्रकार के आयाम करते नजर आते है !न कहने वाला या देखते रहने वाला ही निर्विकार है वही स्थाई का अधिकारी है!वही स्थाई को प्राप्त करता है! स्थाई ही प्रकृति है और प्रकृति ही ईश्वर है

 

“जिस वस्तु या पदार्थ का नाम लेने से आकार की उत्पत्ति हो जाए उसी को अहंकार कहते है”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You missed