आज उस परमतत्व, अक्षर ब्रह्म , परमात्मा की बात करते है जो सदैव आप के ह्रदय स्थल मै विराजमान है ! लेकिन मानव जीवन मे वो दिन भी निश्चय रूप से आते है जब मन और बुद्धि नियत कार्य को छोड़कर अन्य कार्यो मे संलग्न हो जाते है! उसका कारण भी परमात्मा ही है क्योकि परमात्मा मन और बुद्धि के स्वामी है! चेतन जब जड़ के साथ मिलता है तब कर्म करने हेतु मन बुद्धि प्रेरित होती है!क्योकि केवल चेतन स्वरूप निराकार होता है जो जड़ के साथ आकार ग्रहण कर अन्य कार्यो का संपन्न कर्ता बनता है! अविद्या मे उलझे मानव को कभी सगुण ईश्वर स्वरूप के दर्शन नही होते क्योकि वह ईश्वर को ठीक उसी प्रकार से नही देख पाता है जैसे तिल मे तेल, दही मे घी एवम अरुणी ( लकड़ी) मे आग दिखाई नही देती है! लेकिन जब लकड़ी सहित अन्य का मंथन किया जाता है तो आग सहित अन्य पदार्थों का प्रकट्य हो जाता है! उसमें सबसे श्रेष्ठ स्थान नाड़ीग्रन्थि सहित मन, बुद्दि का होता है! जो मुद्राओ, सदाचार, निर्विघ्नं होना, जो संसार है वह वास्तव मे नही है! ऐसी कल्पनाओं को बनाने मे मन की अगली कड़ी ज्ञान होता है! जिससे हम कह सकते है ज्ञान ही ब्रह्म है जिसका आकार असीमित है लेकिन जानने पर प्रीत के साथ बुद्धि की सीमितता बड़ती जाती है!