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परलौकिक हो या इहलौकिक संपूर्ण चराचर जगत के प्रत्येक जीव जंतुओ को नियमो के बंधन ने बाध रखा है लेकिन बहुत अधिक जीव ऐसे है जो नियम रूपी बंधन से छुटकारा पाने के प्रयास मे संलग्न हो जाते जो अप्रत्यक्ष रूप से या अंजाने मे अपने पतन की कामना कर रहे होते है एक उदाहरण के तौर पर बात करे तो पन्ना की यातायात पुलिस प्रभारी नीलम लक्षकार दिनभर और पूरी ड्यूटी के दौरान‍ लोगों को वाहन चलाने के नियमो को समझाती है लेकिन लोग मानने की जगह बचने का प्रयास करते है बात इंडिया ही हो तो बाय हाथ के नियम और अमेरिका मे दाय हाथ के नियम लागू होते है! दुनिया मे आज नियम होते हुए भी न मानने वालों मे से करीब दो लाख पचास हजार से अधिक लोग मानसिक संतुलन खो चुके है एवम यातायात का पालन न करने पर हजारों जाने जाती है एवम लाखों घायल होते है! लेकिन फिर भी मानव नियमो को दर किनार करता है! नियम को न मानने वालो का अध्यन करने के बाद प्राप्त असफलताओं को ध्यान मे रखकर दावे से बोला जा सकता है कि नियमो को मानने वालों मे क्षिपा है सफ़लताओ का राज और वो जीव अपने पूरे जीवन को बनाते है सफल एक मात्र नियम को आधार बनाकर क्योंकि नियम ही सत्य है चाहे जन्म का हो या मृत्यु या अन्य नियम जिनका उपयोग गृहस्थ जीवन हेतु अनिवार्य है नियम मे स्थित शुद्ध तत्व ही इसे पूर्ण बनाता है इसलिए हम कह सकते है कि नियमो से सफलता प्राप्त कि जा सकती है और नियम सफलता का परिचायक है

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