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*सम्मान और लालच: कार्यक्षेत्र में एक कटु सत्य*

आज के समय में यह एक कड़वी सच्चाई बन गई है कि जब हम किसी को अत्यधिक सम्मान देते हैं, तो कई बार वह इसे हमारी कमजोरी मानकर इसका अनुचित लाभ उठाने लगता है। विशेषकर कार्यक्षेत्र में, यह प्रवृत्ति अधिक देखने को मिलती है। हम जिसे आदर देते हैं, वह अक्सर हमारे इस व्यवहार को अपने “बड़ापन” से जोड़ लेता है और हमारे सम्मान को अपनी लालच की पूर्ति का माध्यम बना लेता है।

हमारा सम्मान देना, जिसे हम अक्सर एक सद्गुण मानते हैं, कई बार उस व्यक्ति के लिए एक हथियार बन जाता है। वह जानता है कि हम उसका आदर करते हैं, इसलिए हम शायद ही कभी उसके गलत व्यवहार पर आवाज उठाएंगे। इस खामोशी का फायदा उठाकर, वह अपनी स्वार्थी इच्छाओं को पूरा करता है, चाहे वह हमारे संसाधनों का दुरुपयोग हो, हमारे विचारों का श्रेय लेना हो, या बस अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना हो। यह स्थिति तब और भी पीड़ादायक हो जाती है जब हम देखते हैं कि वही व्यक्ति किसी और के प्रति पूर्ण सम्मान और सहयोग का भाव रखता है, क्योंकि वहां उसे शायद अपनी लालच पूरी करने का मौका नहीं मिलता या उसे प्रतिरोध का डर होता है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि लालच एक संक्रामक प्रवृत्ति है। एक लालची व्यक्ति समानता के सिद्धांत को नहीं समझता। वह दूसरों को केवल अपने उद्देश्यों की पूर्ति का साधन मानता है। कार्यक्षेत्र में, ऐसे लोग अक्सर अपनी स्थिति का दुरुपयोग करते हैं, दूसरों के श्रम का लाभ उठाते हैं, और अपनी सफलता के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। वे केवल शक्ति संतुलन को समझते हैं; जहां उन्हें लगता है कि वे हावी हो सकते हैं, वे दूसरों का शोषण करते हैं, और जहां उन्हें लगता है कि उनका कोई नुकसान हो सकता है, वहां वे विनम्र बन जाते हैं।

हमें यह सीखना होगा कि सम्मान देना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह अंधा नहीं होना चाहिए। हमें यह पहचानने की क्षमता विकसित करनी होगी कि कब हमारा सम्मान किसी के लालच को बढ़ावा दे रहा है। कार्यक्षेत्र में, इसका अर्थ है अपनी सीमाओं को समझना और उन्हें स्पष्ट करना। यदि हम किसी के गलत व्यवहार को नज़रअंदाज करते हैं, तो हम अनजाने में उसे और अधिक लालची बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

समानता की सीख यहीं से आती है। हमें यह समझना होगा कि हर व्यक्ति सम्मान का हकदार है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हमें दूसरों को अपने ऊपर हावी होने देना चाहिए। हमें अपनी आत्म-मूल्य को पहचानना चाहिए और उस पर दृढ़ रहना चाहिए। जब हम किसी को यह अहसास करा देते हैं कि हमारा सम्मान एकतरफा नहीं है और हम अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं, तभी वह व्यक्ति हमें समान दृष्टि से देखेगा और अपने लालची स्वभाव को नियंत्रित करेगा।

अंततः, कार्यक्षेत्र में स्वस्थ संबंध तभी पनप सकते हैं जब सम्मान दोनों ओर से हो और कोई भी इसका दुरुपयोग न करे। हमें अपनी सीमाओं को परिभाषित करना सीखना होगा और जरूरत पड़ने पर “नहीं” कहने का साहस दिखाना होगा, क्योंकि तभी हम न केवल अपना सम्मान बचा पाएंगे, बल्कि एक ऐसे कार्यस्थल का निर्माण भी कर पाएंगे जहां समानता और न्याय का महत्व हो।

 

*लेखक विकास कुमार मिश्रा एडवोकेट*

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