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अच्छे कार्यो मे ऊर्जा का उपयोग करने से बुरे कार्यो मे पाबंदी लगाई जा सकती है! 

अच्छे कार्यो को करना बीमारी और बुरे कार्यो का खातमा करना है

प्रकृति ने हमें जो भी प्रदान किया है उसके दोनों पहलु दिये है जैसे सुख के साथ दुख भी दिया है लाभ के साथ हानि दी है ठीक उसी प्रकार हमारे जीवन मे दो प्रकार के कार्यो की संभावना होती है एक अच्छा दूसरा बुरा, मनुष्य के पास ऊर्जा भी सीमित है उसका उपयोग किसी भी प्रकार के कार्यो मे किया जा सकता है लेकिन स्वभाविक रूप से मनुष्य अवश्यता अनुसार ऊर्जा का प्रयोग करता है जबकि उसे अपनी ऊर्जा को बुरे या गलत कार्यो मे नही लगाना चाहिए क्योकि मनुष्य का शरीर तत्व से निर्मित है न कि योगिक से तत्व पूर्ण रूप से शुद्ध होता है अत: अगर किसी भी शुद्ध रूप मे कोई अशुध् को मिलाया जाये तो वह विभिन्न प्रकार की विकृति उत्पन्न कर देता है वो देखने की हो या स्वाद की हो या कार्य करने की ठीक उसी प्रकार जो व्यक्ति गलत या बुरे कार्य करता है आंतरिक रूप से शुद्ध नही होता जिसका प्रभाव उसके आभामंडल मे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है! 

कहने का अर्थ यह है कि

अगर अच्छाई को बढ़ावा दिया जाये या अच्छाईयों को समाज मे रखा जाये तो बुराई अलग से दिखाई देने लगेगी! किसी को बुरा कहने की अवश्यता ही नही होगी! समाज मे लगने वाला आकर्षण का बल चारों तरफ अच्छाइयों को बिखेर देगा जिससे समाज अच्छा पढ़ते या करते करते अच्छा हो जायेगा! तब बुरा भी अच्छा बनने का प्रयास करेगा! अंत तक पूर्ण रुपेण स्वास्थ रहेगा क्योंकि शुद्ध शुद्ध का मेल है! तीव्र ऊर्जा का उत्पादन किसी भी पदार्थ के शिखर से प्राप्त होता है यही कारण है अच्छा व्यक्ति अच्छा बनता जाता है!

लेकिन आज बुराइयाँ लगातार समाज मे पहुुंच रही है जिससे समाज मे लोग अपनी प्रकृति अनुसार उसकी गहराई या उसमे ध्यान देते है और एक समय ऐसा आता है की मनुष्य बुराई का अध्यन करते करते स्वयं कितना बुरा हो गया उसे पता ही नही चलता! जिससे आने वाले समय मे अशुध् होने के कारण रक्त का प्रवाह एवं अन्य इंद्रिय विक्षुब्द उत्पन्न होने के कारण मनुष्य किसी बड़ी बीमारी का शिकार हो जाता है और अंत: मृत्यु को गले लगा लेता है लेकिन बुरा होकर

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