भारतीय मानव सभ्यता संस्कृति हमेंशा से रंगीन रही है! रंगीन कहने का अर्थ समरसत्ता स्थापित कर प्रत्येक तरह की पवित्रता को बढ़ावा देने के साथ चिकित्सा मे भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्माण करती आई है! मानव के अंदर स्थापित चक्र जो मानव शरीर मे किसी न किसी रंग के परिचायक या कारक होते है! मानव अगर बड़ी एकाग्रता से देखे तो संसार मे पाए जाने वाले सभी रंग मानव शरीर मे विद्यमान है ! रंग ही मानव के मूल है जल तत्व के हजारों प्रकार मानव के साथ अन्य जीव मे जीव उत्पन्न करने के कारक है समझना मानव पर निर्भर है एक उदाहरण के तोर पर देखे तो जब मानव अपनी समस्त ऊर्जा को एक जगह केंद्रित करता है तो गुस्सा आता है गुस्सा आने पर चेहरे मे लाल रंग आने लगता है, चोट कितनी गहरी है के साथ दर्द कितना है यह भी रंग की मदद से त्वचा को देखकर पता लगाया जा सकता है! जिसकी विभिन्न परतें होती है! क्रमश: नीला, काला, सफेद होती है! जो हम शास्त्रो के ज्ञान प्राप्त कर बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप मे जानते है या एक ईश्वर के भक्त या सच की अन्याय पर जीत! लेकिन और गहराई के साथ विचार किया जाए तो इसका संबंध हमारे बात ,व्यवहार, रिश्तों और मन, वचन की पवित्रता का प्रतीक भी है अत: अपने रंगो की चमक किसी ओर(दिशा) फीकी न पड़े किसी भी प्रकार से और जन्म जन्म जन्मंतरो तक युही रंगीन रहे पूरे भारत के साथ विश्व की जीवमात्र की जिंदगी इसी कामना के साथ सभी को होली की हार्दिक शुभकामनायें!