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पर्यावरण के संरक्षण की महती आवश्यकता आज भारत ही नही अपितु पूरी दुनिया महसूस करती है लेकिन वह जमीनी स्तर पर नही आ पा रहे है! मानव के महसूस मे विचार क्षणिक उत्पन्न होते है या कहे तो अवसरवादी प्रतीत होते है! जब तक प्रत्येक दिवस जीने के लिए खाने की आवश्यकता जैसी पर्यावरण की आवश्यकता महसूस नही होगी प्रत्येक व्यक्ति को तब तक पर्यावरण समृद्धि प्राप्त नही कर सकता है तीव्र गति से बढ़ाने हेतु एवम आम नागरिकों मे पर्यावरण के प्रति जगरूकता लाने हेतु बतौर‍ उदाहरण-  रचनात्मक प्रयास पन्ना दक्षिणवन मंडल अधिकारी अनुपम शर्मा की नीति और अभियान मध्य प्रदेश स्तर पर एक शिक्षा के तौर पर उपयोग किया जाना प्रदेश सहित देश के लिए सार्थक सावित हो सकता है! वन विभाग के आला अधिकारियों को ध्यान मे रखकर बढ़ावा देना चाहिए! वन विभाग के अधिकारियों मे आम नागरिकों को वन से जोड़ने की कला नि:शुल्क संरक्षण प्रदान करती है! जब समाज के प्रत्येक स्तर पर पर्यावरण को मूलभूत आवश्यकता के अनुसार अनुसरण किया जायेगा तब ही तीव्रता एवम आगे आने वाले समय मे समृद्धि के साथ पर्यावरण का विकास संभव है अन्यथा की स्थिति मे ” बारिश के मौसम मे मेढक की तरह बोलना ही सावित होगा “क्योकि प्रेम से लगाये गये वृक्ष मे वृद्धि तीव्र एवम प्रेसर मे लगाये गये वृक्ष तीव्र वृद्धि कारक नही होते! समाज की व्यवस्था लगातार बदलते अपने आस पास निरंतर देख सकते है! लेकिन सायद आपने गौर किया हो प्रकृति आपके व्यवहार अनुसार अपने आवरण या पेड़ पौधे स्वरूप को बदल लेती है और आपको पता भी नही चलता! माँ प्रकृति व्यवस्था अनुसार जो रोग जहाँ उत्पन्न होता है वहाँ उसकी औषधि पेड़ पौधा आवश्य उत्पन्न होता है या होता था! लेकिन आज उत्पन्न हुए रोग से किलो मीटरों दूर सायद औषधि मिल जाए , इस दृष्टि से जब वैध देखता है तो बहुत दुखी होता है क्योकि उसने पग पग की प्रकृति को ध्यान मे रखा है! लेकिन पर्यावरण दृष्टि मे समष्टि का अध्यन होता उसमें छोटे वनस्पति पेड़ पौधे कि भूमिका पर प्रकाश कम हो जाता है! कहने का अर्थ सभी संबंधित मानवो को अपनी अपनी भूमिका सक्रिय ढंग से निभानी पड़ेगी! जैसे कोई इमारती लकड़ी, कोई औषधि, कोई पुष्पीय, कोई फलदार, कोई खुशबू, कोई मूल्य, कोई गौड़ पदार्थो की उपलब्धता, कोई छाया, कोई लंबाई, कोई लताएँ, कोई अन्य जन्तुओ हेतु फलदार, कोई जलदार, कोई रत्नदार, कोई तत्वदार,  कोई जानवरो के लिए उपयोगी,कोई वायुदार, कोई ध्यानदार कोई पूजा योग्य, ऐसे अन्य लाखों प्रजातियों के पेड़ पौधों और वृक्षों को एक साथ उगते है तब जाकर पर्यावरण मे प्रकृति संतुलन की स्थिति दर्ज होती है और बहुतायत की स्थिति मे पर्यावरण समृद्धि को प्राप्त होता है! पर्यावरण समृद्धि आर्थिक विकास के साथ संस्कृतिक, सामाजिक , मानसिक, शरीरिक, के साथ अन्य व्यवस्थाओ को सुद्रण कर समाज को बदलने वाला कारक सिद्ध होता है!

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