जल के साथ रमन करने वाला जल नही बन पाया! जल अपने विशेष गुणों के कारण पूजनीय है! जल ही जल है! तत्व के रूप मे भी विशेष गुण धारण करने वाला है! ऐसी एक मात्र क्षमता तत्वों मे ही विद्यमान है जो सभी मे समलित होकर अपने आप को अप्रत्यक्ष कर लेता है! ये अप्रत्यक्ष होने की सीख अगर मानव अपने जीवन मे उतार ले तो हमेशा के लिए प्रत्यक्ष हो जायेगा! फिर मानव जीवन से संबंधित अगर दूसरे गुण की बात करे को जल का स्वभाव निर्मल होता है जो हमेशा शीतलता प्रदान करता है लेकिन जैसे ही उसे अग्नि मिलती है वह तुरंत गर्म होने लगता है विशेष बात यह है कि! मात्र तब तक ही गर्म रहता है जब तक की अग्नि संपर्क मे रहती है! अग्नि कि उत्पति भी जल करता है या कहे तो जल मे अग्नि होती है लेकिन वह तब ही भाव को प्रकट करता है! “कहने का मतलब संपर्क से प्रकटय होता” है मानव का निर्माण जिन पंचभूतो से हुआ है उनमें से एक तत्व जल भी है विभिन्न प्रकार के विचार धारा वाले मानवों को देखे तो उनमें एक विचारधारा वाले मानव ऐसे है जिनको एक बार गर्म(अहंकार) करने पर कभी ठंडे नही होते! ऐसे मानव के अंदर जल तत्व की कमी हो जाती है! और आगामी समय मे मृत्यु को आमंत्रित देता है इसके पीछे किसी व्यक्ति का संपर्क होता है जिससे की उसमें गर्मी या अहंकार का भाव प्रकट करवाने मे मददगार होता है उस व्यक्ति के मूल का पतन होता है! आने वाले समय मे अहंकारी और अहंकार उत्पन्न मे साथ देने वाला दोनों का अंततः विनास हो जाता है