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निजत्व में विस्तार ही विकास का कारक है

आज के युग में निजत्व की विचार धारा को सकरी गलियों से गुजरना पड़ रहा हैजबकि ऐसी शिक्षा का विस्तार पश्चिमी देशों में होता था। उस की गति  इतनी  बढ़ी की भारत जैसे महान संस्कृति वाले देश को चपेट लिया! आज भारत निजत्व की संकुचित विचार धारा से गुजर रहा है लोगों का अपना अपना मानना है कोई धर्म पर आस्था रखता है तो कोई विज्ञान पर। धर्म जहा निजत्व की विचार धारा को विशालता प्रदान करता है वहीं पर अगर विज्ञान के क्षेत्र में जाकर बात करे तो विज्ञान का प्रभाव हमारे शरीर और संसाधनों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनो रूपों मे होता है सोचने का विषय जब हम निजत्व की विचारधारा को छोटा करते है तो निश्चित रूप से हम किसी आकर्षण या विज्ञान या प्रकृति की किसी शक्ति या नियम की अवेलना करते है जिसका खामियाजा हम और हमारे परिवार के साथ- साथ  संबंधित लोग रिश्तेदारों के साथ साधन संसाधन को भुगतना पड़ता है अगर अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में जाकर अध्यन करे तो निजत्व की विशाल विचारधारा भी विकास का एक महत्वपूर्ण कारक है आज हमारे समाज को निजत्व की विचारधारा बढ़ाने की अवश्यता है नही तो आने वाले समय में आज माता पिता भाई बहिन के बीच में भी विभाजन रूपी निजत्व की भावना पनपने के बीज पूरी तरह तैयार है ये मेरा है वह मेरा नही ,इस विचारधारा ने मनुष्यो को बर्बाद करने का महत्वपूर्ण साधन है ये शब्द कभी भी भारतीय संस्कृति में नही आया लेकिन यह शब्द सभी भारतीयों के पास मिल जायेगा। सभी ने इस शब्द या वाक्य को बिना विचार के अपनाया है। अगर इस वाक्य में ध्यान नही दिया तो परिवार सहित देशों को बर्बाद कर देगा।

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