नदियों से सरलता और समुद्र से ज्ञान सीख लेना चाहिए!
प्रकृति जीव मात्र के सृजन पालन पोषण और संहार जैसी व्यवस्था स्वतः करती है और करने मे समर्थ है! इसी प्राकृतिक द्रश्य मे नदिया सरल स्वभाव से निरंतर बहती रहती है अगर जल मे मिट्टी घुल जाए तो नदियाँ एस आकार मे अपने प्रवाह को प्रारंभ कर देती है! कहने का अर्थ है की जहाॅं नदी को सीधा प्रवाहित होना था! वहाँ बारिश या अधिक मात्रा मे घुली मिट्टी के मंशा अनुसार प्रवाहित होने लगती है लेकिन जो उसके साथ प्रवाहित होता है उसका कभी विरोध नही करती है क्योकि उसे पता होता है जो भी अवसाद साथ मे है ये जरूर किनारा ढूँढने के लिए आतुर है मे क्यो इसका विरोध करू! अंतोगत्वा नदियाँ अपना संपूर्ण जल समुद्र मे जमा कर देती है और समुद्र बिना किसी हलचल के ग्रहण कर लेता है! क्योकि समुद्र बड़ा होने के कारण अपनी सीमा का त्याग नही करता है! और नदियों को विचार करने पर मजबूर कर देता है! ठीक उसी प्रकार मानव को अपने जीवन की गति निरंतत् रखनी चाहिए जो भी अवसाद मानव रूपी शुद्ध तत्व मे मिलेगा ( दुःख, घ्रणा, अपमान, दरिद्रता, क्रोध) यह सभी स्वतः ही अपना किनारा ढूँढने लगेगा अगर मानव मे शुद्धता विद्यमान रही तो! फिर ही आप समुद्र जैसे अनंत पर्मेश्वर् मे और मन की शांति पाने के अधिकारी होगे!