रिपोर्टर मोहित वशिष्ठ
सैफनी नगर में भूड़ा मढ़ी आश्रम पर लगने वाले ऐतिहासिक मेले का रहस्य
रामपुर:सैफनी नगर में पूर्वी सीमा पर स्थित भूड़ा मढ़ी स्वर्गाश्रम पर लगने वाले सालाना ऐतिहासिक मेले का आयोजन बाबा गुरुवाला सिद्ध की याद में हरवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में किया जाता है। मेला भाद्रपद शुक्ल मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर दस दिनों तक चलता है। मेले में रामपुर, बरेली,मुरादाबाद, संभल समेत आसपास के जिले के लोग भी बड़ी भारी संख्या में शामिल होते हैं। कहा जाता हैं कि महाभारत युद्ध से पूर्व यहां पर बाबा गुरु वाला सिद्ध ने उस समय इस जगह पर जीवित शरीर की समाधि लेकर सिद्ध समाधि बनाया।उस समय यहां घनघोर जंगल में जंगली जानवरो वास हुआ करता था।यहां पर उन्होंने ऐसे ऐसे चमत्कार दिखाए जिन्हें देखकर लोग आज भी याद करते हैं। सैफनी नरेश भूरिश्रवा बाबा गुरु वाला सिद्ध का भक्त था। भूरीश्रवा राजा को भगवान शंकर ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे एक भूरे रंग की हथिनी वरदान स्वरूप में दी थी। इस भूरी हथिनी के कारण उसे भूरिश्रवा कहा जाने लगा। भूरिश्रवा ने महाभारत में कौरवों का साथ दिया था। जब तक भूरिश्रवा बाबा गुरु वाला सिद्ध का आशीर्वाद लेता रहा। तब तक युद्ध में वह अपना पराक्रम दिखाता रहा। उसके इसी पराक्रम से पांडवों को काफी नुकसान हुआ। इसी से परेशान पांडवों ने उसकी शक्ति का राज खोज निकाला और एक दिन भीम ने गदा से भूरी हथिनी को मार दिया। हथिनी को मारने के पीछे पांडवों को नीति भूरिश्रवा को बाबा गुरुवाला सिद्ध के आशीर्वाद लेने से रोकना था। हथिनी के मरने के बाद भूरिश्रवा भूड़ा स्वर्गाश्रम नहीं आ सका। अगले दिन जब वह सात्यिकी से युद्ध कर रहा था तब अर्जुन ने पीछे से आकर तलवार से दोनों हाथ काट दिए। इसके बाद भूरिश्रवा की मौत हो गई। लोगों का मानना है कि यदि भूरिश्रवा बाबा गुरु वाला सिद्ध का आशीर्वाद उस दिन प्राप्त कर लेता तो अर्जुन के हाथों उसकी मौत नहीं होती। आस्थाओं और भावनाओं से जुड़े इस भूड़ा स्वर्गाश्रम पर बाबा गुरु वाला सिद्ध के बाद बाबा जीवनदास, बाबा तुलसीदास, बाबा बालकदास सहित अनेको साधु संतों ने लोगों का मार्ग दर्शन किया। 16 नवंबर 02 को ब्रह्मालीन हुए कबीर पंथी गुरु हरिदास ने इस रमणीक स्थान पर दो दशकों से अधिक समय तक लोगों का आध्यात्मिक मार्ग दर्शन किया। करोड़ों की संपत्ति के कारण भूड़ा स्वर्गाश्रम की गद्दी को लेकर अदालत में वाद चल रहा है पर यहां श्रद्धालुओं की आस्था दिन प्रतिदिन बढ़ी ही रही है। मेले में ही नहीं बल्कि प्रत्येक सोमवार को दूरदराज के लोग भी यहां दर्शन को आते हैं। यहां नगर के लोग शादी, पुत्र जन्म,मुंडन आदि पर भी अपने कुल परंपरा के अनुसार धार्मिक संस्कार करते हैं। इसी के चलते क्षेत्र क्या दूर-दूर तक इसकी मान्यता है। पूर्णिमा के चलते शुक्रवार को भी समाधि पर सैकड़ों भक्त पहुंचकर चादर और प्रसाद चढ़ाते है। वैसे मेला यहां पूर्णिमा पर शुरू हो जाता है, जिसके कारण भक्त पूर्णिमा से ही पहुंचने लगते है परंतु अब कई वर्षो से आश्रम की संपत्ति पर विवाद चलने के कारण यह ऐतिहासिक मेला प्रशासन की देख रेख में लगता है