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श्री वेद प्रकाश मिश्र:( पूर्व हिंदी अध्यापक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय)

हिंदी दिवस: हिंदी हमारी सांस्कृतिक धरोहर और राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक:

14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो भारत की सांस्कृतिक धरोहर और हमारी राष्ट्रीय पहचान को सशक्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। इस निर्णय ने न केवल एक भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया, बल्कि उस सांस्कृतिक एकता को भी प्रकट किया जो भारत की विविधता के मूल में है।

हिंदी: सभ्यता और संस्कृति का वाहक हिंदी केवल एक भाषा नहीं है, यह हमारी सभ्यता और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। इसके माध्यम से हम न केवल संवाद करते हैं, बल्कि अपने विचारों, भावनाओं और विचारधाराओं को अभिव्यक्त करते हैं। हिंदी साहित्य की समृद्ध परंपरा, जिसमें महाकवि जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, हरिवंश राय बच्चन, महादेवी वर्मा जैसे महान साहित्यकारों ने योगदान दिया है, आज भी जनमानस को प्रेरित करती है। इनकी रचनाएँ हमारे समाज के मूल्यों, आदर्शों और वास्तविकताओं को दर्शाती हैं।

राष्ट्रीय एकता और हिंदी का योगदान हिंदी ने राष्ट्रीय एकता के सूत्रधार के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदी ने जन-जन को एकजुट किया और उन्हें अंग्रेजी शासन के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बनाने में मदद की। महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने हिंदी को जनसाधारण की भाषा के रूप में देखा, जिसने देश को एक सांस्कृतिक और भाषाई धागे में पिरोने का काम किया।

वैश्वीकरण और हिंदी का भविष्य आज के वैश्विक युग में, हिंदी का महत्व और भी बढ़ गया है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर हिंदी की लोकप्रियता बढ़ रही है। यह न केवल देश के विभिन्न हिस्सों में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना रही है। दुनिया भर में फैले हिंदी भाषी समुदायों ने हिंदी को एक वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई है।

सामाजिक और सांस्कृतिक जिम्मेदारी हिंदी दिवस हमें हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक जिम्मेदारी की याद दिलाता है। हमें हिंदी को केवल एक भाषा के रूप में नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में सम्मान देना चाहिए। युवाओं को इसके संरक्षण और प्रसार के लिए प्रेरित करना, स्कूलों और कॉलेजों में हिंदी साहित्य और भाषा के प्रति रुचि बढ़ाना, और हिंदी के डिजिटल प्रसार को और सशक्त करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

उपसंहार हिंदी दिवस केवल एक उत्सव नहीं है, यह हमारी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को सशक्त करने का अवसर है। आइए इस अवसर पर हम संकल्प लें कि हम हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाते रहेंगे और इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करेंगे। हिंदी हमारी आत्मा है, हमारी पहचान है, और इसे सहेजना और बढ़ावा देना हम सभी की जिम्मेदारी है।

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