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“भक्ति में सबसे बड़ी बाधा अंहकार है।”

हमारे जीवन का बस एक ही उद्देश्य होना चाहिए वो केवल अपने इष्ट देव भगवान की पूजा करना। केवल भगवान ही है जो हमें इस भवसागर से सदा के लिए पार लगा सकते है। श्रीमद भागवत यानि श्री माने लक्ष्मी और मद माने अहंकार, जिनको लक्ष्मी का अहंकार हो अथवा जिसको किसी वास्तु का अहंकार हो जैसे रूप का, धन का, जवानी का, भक्ति का भी अभिमान हो, उनको श्रीमद भागवत सुननी चाहिए। श्रीमद भागवत सुनने से उनका अहंकार दूर हो जायेगा।

हरिशंकर शर्मा आर्यनगर

भक्ति में जो मुख्य बाधा होती है वो अहंकार ही होता है। हमारे और भगवान के बीच में अगर कोई भी सबसे बड़ी बाधा होती है तो वो केवल अहंकार ही होती है। अहंकार जब हमको आ जाता है तो हमारे और भगवान के बीच में बाधा आ जाती है। हम दोनों के बीच में एक अहंकार की दीवार आ जाती है। लेकिन दीवार के उस पर जो मेरे गोविन्द जी खड़े है वो ये सोचते है कि कब ये इस अहंकार की दीवार को तोड़े और मैं इसको अपने दर्शन दूँ।
ऐसा हो ही नहीं पाता है। ऐसा इसलिए नहीं हो पाता है क्योँकि हम तो अपने आप में ही व्यस्त रहते है। अपने आप में ही खोये रहते है। अहंकार को दिन प्रतिदिन बढ़ाते ही रहते है। जैसे ही महाराज श्री ने कल की कथा में कहा था कि रावण को मैंने नहीं मारा था उसको तो उसकी “मैं” ने ही मारा था। अब तो हमारे सनातन धर्म के कई लोग पहले तो केवल भोजन ही कर लिया करते थे पर अब तो कई लोग भगवान की पूजा भी कर देते है मंदिर में जुटे और चप्पल पहनकर।

इन सब को देखकर तो मेरे मन को बड़ा ही कष्ट होता है। अगर हम ही अपने भगवान का मान सम्मान नहीं करेंगे तो और कौन करेगा? हम सब की तो ये पहली रेस्पोंसिब्लिटी होती है की हमको तो अपने भगवान का सम्मान तो करना ही चाहिए तभी तो हमारा सब लोग सम्मान करेंगे। भगवान को हमारी तुम्हारी जरुरत नहीं होती है। केवल हम को ही भगवान की जरुरत होती है। क्या भगवान हमारे जाने से और भी महान हो जायेगा, नहीं ऐसा कुछ भी नहीं होगा। भगवान तो जैसे थे वैसे ही बने रहेंगे।

आप विश्वास मानिये भगवान के एक ही संकल्प से ही यह पृथ्वी क्षण भर में ही नष्ट हो सकती है। और दूसरे ही संकल्प मात्र से ही उसी दुनिया का फिर से सृजन हो सकता है। तो श्रीमद भागवत हमें सिखाती है कि हमें अहंकार से दूर ही रहना चाहिए। अगर हम भगवान के मंदिर में जाएँ तो हमारे पैर में जूते और चप्पल न हो। भगवान के मंदिर में जाये तो चमड़े की बेल्ट और पर्स भी न हो। और सदा ही भगवान के मंदिर में पूरी श्रद्धा भाव से ही मंदिर में जाना चाहिए।

कल की कथा में परीक्षित राजा शुकदेव जी महाराज से कहते है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन हो उसको क्या करना चाहिए। यहाँ पर एक बात तो पक्की थी कि राजा के पास तो सात दिन थे ही क्योँकि उनको तो सातवें दिन की मृत्यु का श्राप लगा था। अब क्या हमें इस बात का विश्वास है कि क्या हमारे पास वो सात दिन भी है की नहीं है। जब हमको ये पता ही नहीं है की क्या हमारे पास सात दिन है भी की नहीं है तो हमें किस बात का घमंड है।

आप याद रखिये की मृत्यु के तीन वजह पक्की होती है और वो है समय, स्थान और कारण। हमको अपनी मृत्यु को शोक नहीं बनाना चाहिए, मृत्यु को तो हमें उत्सव बनाना चाहिए। मेरे जाने के बाद चाहे दुनिया रोये लेकिन मुझे न रोना पड़े,यहाँ या वहां।सपोज करो की कोई आपको बता दे की आज आपका आखिरी दिन है तो इस आखिरी दिन में आप क्या करना चाहोगे।तो इस के लिए आप सोचो बैठा कर थोड़ी देर ठन्डे दिमाग से।अपना अच्छे से अच्छा सोचो की हमको क्या करना चाहिए..!!
जय श्री कृष्ण

 

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