आज पौधे की दुनियाँ की बात करते है जो मानव से दस गुना अधिक संघर्ष कर अपने आप को इस दुनियाँ मे जीवन जीने की जिद करते है! लेकिन विनम्रता के भाव को कभी नही छोड़ते असल जिंदगी जीने का संघर्ष तो पोधो को करना होता है! अगर तुलनात्मक अध्यन किया जाए तो पौधे की तुलना मे मानव तो कुछ ही प्रतिशत संघर्ष करता है! विज्ञान की माने तो जीवित जीव बोला जाता है उसको प्रत्येक वह प्रत्येक क्रिया या वस्तु की आवश्यकता होती है जो एक मानव को प्रकृति मे जीवन जीने के के लिए होती है!विज्ञान को अपने जरूरत अनुसार उपयोग करने वाले स्वार्थी मानव ने सोचा है! कि हम अपनी जरूरत के लिए कैसे उन्हे मारते है! जबकि पौधे किसी भी मानव से कोई चाह नही करते विकास से लेकर जन्म तक की प्रक्रिया के दौरान तो फिर क्यो विज्ञान का मानव आज तक दुश्मनो जैसा व्यवहार करता चला आ रहा है! अपने स्वार्थी जीवन ( अर्थ, काम,) से ऊपर जा कर विचार करना चाहिए कि जो किसी के आगे भोजन , पानी,घर, स्वास्थ, शिक्षा, विकास मे एक मात्र प्रकृति की शिवा और किसी से कुछ आस नही करता है! इसे कहते है निष्काम भक्ति और एक मात्र प्रकृति मे विश्वास रखने वालो मे, माना की खड़ा होना उसका स्वभाव है लेकिन उसे बरकरार रखते हुए कभी बैठता नही, सायद कभी कोई ऐसे घटना घटी हो कि पौधे से किसी मानव को नुकसान पहुचाया हो या उसके ऊपर गिरा हो ! जबकि प्रकृति मे सबसे कम घटित होने वाली घटना होगा, अन्य घटनाएँ तो करोड़ो की संख्या मे घटित होती है! बलिदान तो ऐसा की स्वयम् को खत्म कर अन्य को जीवन प्रदान करता है! मानव जिंदगी रूपी तप की बात करता है लेकिन पौधे करके दिखलाते है ये संसार की श्रेष्ठ कला मे जीवन जीने के आदि, आदिपुरुष है! इसलिए ये पूजनीय है इनके जैसे क्षमता किसी विज्ञान के मानव मे नही है! जबकि संरचना की बात करे तो संसार के समस्त जीव क्रिया करते है! पुराणों की माने तो वृक्ष बनना मात्र पूर्व जन्म मे किये गये थोड़ी बहुत पाप से मुक्ति होती है! क्योकि वृक्ष या पौधे अपने जीवन मे मन, क्रम, वचन से हमेशा शुद्ध रहते है कोई भी पाप इनके द्वारा नही होता है! इसलिए संसार के सच्चे योगी है जो प्रकृति के साथ अपने आप को चलाते है उसके लिए प्राण नीछावर क्यो न करना पड़े! इसलिए पोधो को संसार का योगी, तपस्वी , आदि पुरुष बोलना चाहिए और बोलने वाले बोलते है!