आज की कहानी बहुत मार्मिक और सीख देने वाली है :-
एक दिन पत्रकार महोदय मुझे कॉल 📞 कर बताए कि सर भट्ठे की कोठरी में कई दिनों से भूँखे बुजुर्ग दंपत्ति पड़े है और अंदर से बहुत ज़्यादा बदबू आ रही है,मैके पर गया स्थिति उस से बदतर थी किसी तरह निकाल के हॉस्पिटल ले गया।शरीर में सफेद नाली में जैसे कीड़े 🪱 होते पड चुके थे।वार्ड बॉय उल्टियां करने लगा तब हमारे हमराही सुनील ,सुरेंद्र सब मिल कर डॉक्टर साहब के साथ धुले,उनकी पट्टी करा कर वृद्धा 👵🏻 आश्रम पहुँचा दिया।
अगले दिन बुजुर्ग की मौत हो गई तो अंतिम संस्कार के लिए उनके बच्चों को तलाश किया गया तो ज्ञात हुआ बड़ा वाला साधू बन चुका है उसने आने से इंकार कर दिया छोटा हमेशा नशा में रहता है उसको नशे की लत ने बर्बाद कर दिया।दोनों लड़कों के नाम बड़े प्यार से जय वीरू रखे थे।अब उनकी ठिट्ठी को कंधा देकर हमसे इंस्पेक्टर भाई विशाल सिंह उनके अंतिम संस्कार की पूर्ण व्यवस्था किये और सम्मान के साथ किया।कुछ महीनों बाद पता चला दादी भी चल बसी।
इंसान को कीड़े पड़ें लोग बद्दुआ देते सुना था पहली बार देखा था।अब प्रश्न था जय वीरू क्यों नहीं आये हम सब भी कोस रहे थे और थाना दिवस में यही चर्चा थी चुकी पेपर में बड़े कॉलम में छापा था।हर कहानी के दो पहलू होते है दूसरा पहलू सुन रहे एक बुजुर्ग एप्लिकेंट ने बताई कि साहब जो दादी थी वो जय वीरू की माँ नहीं थी ये बुढ़ऊ पुजारी का काम करते थे बरेली के रहने वाले थे अपनी पत्नी जय वीरू की माँ को गांव में छोड़ कर गाँव की नाऊन को ले कर चले आये थे इसलिए लड़के नफ़रत करते थे।
कहानी का सार : हर गुनाहा का हिसाब इहलोक में है या फिर परलोक में ख़ुद निर्णय कर लें।
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