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आज जिंदगी मे बखूबी देखने और प्रयोगिक तौर पर करने के भी अवसर प्राप्त होते है! जब मन द्वारा जो विचार किया जाता है अक्सर वो पूर्ण नही होता है! लेकिन अगर कोई महापुरुष मन मे संकल्प कर लेता है तो उनका पूर्ण ही होता है क्योकि महापुरुष द्वारा आहार विचार और क्रिया कलाप की शुद्धता का बखूबी ख्याल रखा जाता है जिससे सभी नाड़ीया शुद्ध हो जाती है नाडीयो की शुद्धता से मन की शुद्धता होती है! शुद्धता का सम्बन्ध किसी एक युग से नही युगों युगों से होता है! मन त्रिकाल मे भ्रमण करने वाला होता है! यही कारण है की जिस महापुरुष की उपयुक्त वर्णित शुद्धता जितनी अधिक होती है वह भूत और भविष्य की व्याख्या उतने ही सहज भाव से करने मे सक्षम होता है! लेकिन एक साधारण मानव इहलोक मे निवास करता है मन जब विचरण अन्य किसी लोक मे होता है तो उसके द्वारा किया गया संकल्प कभी सिद्धि प्रदान नही करता है! लेकिन जब मन का निवास इहलोक लोक मे हो और फिर उसी के साथ संकल्प हो जाए तो कार्य की सिद्धी प्राप्त हो जाती है! चुकी कर्म का निवास स्थल शरीर के साथ इहलोक मे होता है इसलिए मानव द्वारा जो कर्म किया जाता है उसके साथ संकल्प करने से सिद्दी प्राप्त हो जाती है! ” मन के द्वारा किया गया संकल्प महापुरुषों के अलावा अन्य किसी के के पूर्ण हो उसकी संभावना कम पाई जाती है लेकिन कर्म के द्वारा किया गया संकल्प सिद्धी देने वाला होता है “

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