श्रमिक उजला जिला सवाददाता पीयूष दीक्षित
लखीमपुर खीरी।
नेपाल स्थित बनबसा बैराज से छोड़े गए पानी के बाद मंगलवार को शारदा नदी एक बार फिर रौद्र रूप में नजर आई। इसका सबसे बड़ा असर शहर से लगभग 45 किलोमीटर दूर बिजुआ ब्लॉक के बझेड़ा गांव में देखने को मिला, जहां बाढ़ के पानी ने गांव को चारों ओर से घेर लिया है। अब गांव कटान के मुहाने पर खड़ा है और ग्रामीणों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती हैं।
गांव की खेती-किसानी पर सबसे पहला वार पड़ा है। चार से पांच किलोमीटर क्षेत्र में फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गई हैं। खेतों में खड़ी धान, गन्ना और सब्जियां अब पानी और कीचड़ में तब्दील हो चुकी हैं। पशुपालन करने वाले किसानों के सामने चारे का संकट खड़ा हो गया है। गांव के रामरतन कहते हैं, “खाने को अनाज नहीं बचा, पशुओं के लिए चारा भी नहीं। अब तो खुद भूखे मरने की नौबत आ गई है।”
सवा छह करोड़ की परियोजना बनी मज़ाक
करीब दो साल पहले बाढ़ और कटान से बचाव के लिए प्रशासन ने 700 मीटर लंबा बंधा बनवाया था, जिसकी लागत करीब सवा छह करोड़ रुपये थी। लेकिन शारदा की उफनती लहरों ने इस बंधे के 60 मीटर हिस्से को बहा दिया। ग्रामीणों का आरोप है कि इस बार कोई भी ठोस इंतजाम नहीं किए गए, जिससे बंधा कमजोर पड़ गया और पानी गांव में घुस आया।
गांव के नन्हें, राजकुमार और सर्वेश जैसे ग्रामीणों का कहना है, “अगर समय रहते इंतजाम किए गए होते, तो शायद गांव आज सुरक्षित होता। अब हालात ये हैं कि दो-चार दिन और ऐसे ही रहा तो मकान भी बहने लगेंगे।”
नाव बना सहारा, भूख बनी समस्या
गांव के अधिकांश रास्तों पर नाव ही एकमात्र विकल्प बचा है। केवल मुख्य मार्ग अभी सुरक्षित है, लेकिन बाकी रास्तों पर पानी का कब्जा है। लोग ऊंचे स्थानों पर जाकर चारा काटने को मजबूर हैं।
प्रशासन की चुप्पी से बढ़ी नाराज़गी
स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता को लेकर ग्रामीणों में गहरा आक्रोश है। लोगों का कहना है कि बाढ़ का खतरा हर साल रहता है, बावजूद इसके कोई स्थायी समाधान नहीं खोजा गया। इस बार तो हालात और भी भयावह हैं।
निष्कर्ष: गांव खतरे में, ज़िम्मेदारी किसकी?
बझेड़ा गांव की स्थिति अब एक आपदा से कम नहीं है। फसलें बर्बाद, पशुधन संकट में और लोगों के सिर पर छत भी खतरे में है। सवाल उठता है कि क्या प्रशासन अब भी चेतेगा, या फिर कोई बड़ी त्रासदी होने के बाद जागेगा?